तुम बुद्ध बने
और ज्ञान बांटा
पर तुम्हारे ज्ञान को
अपने जीवन में उतारने की
फुरसत कहाँ मुझको?
मुझे तो सिर्फ़ लगाव है
तुम्हारे घुंघराले बालों एवं
गम्भीर मुस्कान वाले
धड़ विहीन सिर से।
मैंने अपना मेहमान कक्ष
सज्जित किया है
एक कोने में टेबल पर
तुम्हारा सिर धरकर।
मैंने लटकाये हैं
मेरे शयनकक्ष में
दीवार पर खूंटी में टांगकर
दो महंगे तैल-चित्र
जिनमें धीर गंभीर मुद्रा में तुम
जैसे कि मोगलिपुत्त तिस्स से
वाद करने के किसी पहलू को
याद कर रहे हो।
दरअसल मैं एक बुद्धिजीवी हूं
पर तुम्हारा बुद्ध होना
मेरी समझ से परे है
और अपने आपको बुद्धिजीवी
प्रमाणित करने का
यह ‘सिम्बोलिक जेस्चर’ मात्र है।
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