अजीतपाल सिंह दैया
AJIT PAL SINGH DAIA
Saturday, March 9, 2013
वसंत
आओ
फिर एक बार वसंत.
गिर गए
जीर्ण –शीर्ण पान
कोमल टहनी
किसलय सजे
नवसृजन गान.
सस्मित
नीलगगन
हर्षित दिगंत.
खिले भांति भांति
पुष्प चहुं ओर
कुंज –निकुंज
तितलियाँ करती
नृत्य चितचोर.
अहो , नववधू सी
वसुधा श्रीमंत !!!
-अजीतपाल सिंह दैया
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