यह मेरा प्रेमपत्र पढ़कर
तुम नाराज़ हो गयी ,
खुद नहीं आए हम
अब के सावन में
हम से यह खता हो गयी ,बस एक सफहे पर
एक नन्ही नज़्म लिखकर
खत कर दिया था रुखसत ,
मुझे तुम्हारी बुदबुदाहट
सुनाई दे रही है प्रिये
'कमबख्त पिया ,तुम्हें
हमारे लिए नहीं है फुर्सत ।'
ओह !
लफ्ज मेरी नज़्म के
जलकर राख हो रहें हैं,
ज़रा मोहब्बत से पढ़ो ए जानशी
आंखों में गुस्से की
इतनी आग ठीक नहीं ..........
-- अजीत पाल सिंह दैया
No comments:
Post a Comment