सपने
जो
शिद्दत से
देखे थे
बाबुल के घर ,
खूंटी पर
टांग कर उन्हें
चली गई वोह
मेहंदी रचा हाथों में
अज़नबी के साथ ,
अपने घर का
बोझ हल्का कर ।
---अजीत पाल सिंह दैया
जो
शिद्दत से
देखे थे
बाबुल के घर ,
खूंटी पर
टांग कर उन्हें
चली गई वोह
मेहंदी रचा हाथों में
अज़नबी के साथ ,
अपने घर का
बोझ हल्का कर ।
---अजीत पाल सिंह दैया
बेटियाँ.............हमेशा से ऐसी ही होती हैं।
ReplyDelete"कहाँ थे आप इतने दिनों से ,ऐसी गुनगुनाती कविताओं का खजाना लिए "
ReplyDeletelajavab, khubsoorat.
ReplyDeleteaapki kavitaye bahut sundar hain.