लो कर दी
तुम्हारे नाम
यह सुरमई सी शाम ।
तुम्हारी आंखों में
नज़र आता है
मुझे सारा संसार ।
यूँ ही देखने दो
इनकी असीम
गहराइयों में
ढूँढने दो अपना
महकता हुआ प्यार।
तुम्हारे लबों पर
धरा है मेरा
संचित प्रेम का
उफनता ज्वार ।
तुम्हारी साँसों की महक
ज्यों .........
ज़रा !ठहरो !
जल रही है दाल
कमबख्त रसोई में ,
आज फ़िर खानी पड़ेगी
जली हुई दाल
तुम्हारे प्यार में।
----- अजीत पाल सिंह दैया
यह सुरमई सी शाम ।
तुम्हारी आंखों में
नज़र आता है
मुझे सारा संसार ।
यूँ ही देखने दो
इनकी असीम
गहराइयों में
ढूँढने दो अपना
महकता हुआ प्यार।
तुम्हारे लबों पर
धरा है मेरा
संचित प्रेम का
उफनता ज्वार ।
तुम्हारी साँसों की महक
ज्यों .........
ज़रा !ठहरो !
जल रही है दाल
कमबख्त रसोई में ,
आज फ़िर खानी पड़ेगी
जली हुई दाल
तुम्हारे प्यार में।
----- अजीत पाल सिंह दैया
kya karenge, shadishuda ko pyaar me jali huyi daal hi milti hai.good.
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