इन्द्र धनुष ज्यों कोई
गगन के गालों पर
तुम डिम्पल सी हो।
तारों वाली चुन्नी में
मलमली कुरते पर
तुम सिंपल सी हो ।
वासंती हवाओं में झूमती
पीले फूलों से भरी
तुम फ़रवरी सी हो।
अमराइयों में पकी हाल ही
खट्टी मीठी कच्ची पक्की
तुम केरी रस भरी सी हो।
भोर भये उगते सूरज की
थिर पानी में डूबी
पहली उजली किरण सी हो ।
जितनी सुलझे उतनी उलझे
जितना भी मैं सुलझाऊं
तुम बड़ी उलझन सी हो ।
--अजीत पाल सिंह दैया
तुम डिम्पल सी हो।
तारों वाली चुन्नी में
मलमली कुरते पर
तुम सिंपल सी हो ।
वासंती हवाओं में झूमती
पीले फूलों से भरी
तुम फ़रवरी सी हो।
अमराइयों में पकी हाल ही
खट्टी मीठी कच्ची पक्की
तुम केरी रस भरी सी हो।
भोर भये उगते सूरज की
थिर पानी में डूबी
पहली उजली किरण सी हो ।
जितनी सुलझे उतनी उलझे
जितना भी मैं सुलझाऊं
तुम बड़ी उलझन सी हो ।
--अजीत पाल सिंह दैया
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