Saturday, April 10, 2010

त्रिवेणियां


अमावस की रात फलक पर देखा कि
तारे झूम रहे थे 'मेक्सिकन वेव 'बनाकर

कहकशां से गुजर रहा था मैं ,प्रिया के संग ।
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अम्मी से पूछो बबली , आज अमावस है क्या
चाँद नज़र नहीं आ रहा है अब तलक आकाश में
कैसे नज़र आएगा बाबा ,वोह तो मेरी ड्राइंगबुक में है।
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होठ जल गए थे मेरे बोसा लेते वक्त
गुस्सा धर रखा था तबस्सुम की जगह
सिगापुर से गिफ्ट नहीं लाया था उसके लिए ।
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मेज़ पर देर तलक बैठा रहा मैं
हाथ में शीशे के पेपरवेट के टुकड़े लिए
टूटे हुए सपने कहाँ कभी जुड़ा करते हैं ।
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-- अजीत पाल सिंह दैया