Tuesday, August 30, 2011

प्रेमपत्र-3

यह मेरा प्रेमपत्र पढ़कर
तुम नाराज़ हो गयी ,
खुद नहीं आए हम
अब के सावन में
हम से यह खता हो गयी ,
बस एक सफहे पर
एक नन्ही नज़्म लिखकर
खत कर दिया था रुखसत ,
मुझे तुम्हारी बुदबुदाहट
सुनाई दे रही है प्रिये
'कमबख्त पिया ,तुम्हें
हमारे लिए नहीं है फुर्सत ।'
ओह !
लफ्ज मेरी नज़्म के
जलकर राख हो रहें हैं,
ज़रा मोहब्बत से पढ़ो ए जानशी 
आंखों में गुस्से की 
इतनी आग ठीक नहीं ..........
-- अजीत पाल सिंह दैया  

Sunday, August 28, 2011

प्रेमपत्र -2

उस रात
मैं छत पर बैठे हुए
चाँद से बतियाते रहा
सारी रात ।
सुनो चाँद ,
मेरी प्रिया निराली सी है
नमकीन चाय की प्याली सी है
मेरी प्रिया भोली सी है
पोदीने की गोली सी है ।
वह चित-चोरनी
सावन में पंख फैलाकर
नाचती हुई मोरनी ।
वह जब लहराती है
अपने खुले बाल
घटाएँ शरमाकर
हो जाती हैं ओझल,
उसके होंठ गुलाब की
पंखुरियों से कोमल ,
मैंने अक्सर देखा है 
तितलियों को मँडराते 
उसके इर्दगिर्द ।
वह चहकती है ऐसे 
भोर भए ज्यों करे 
पंछी कलरव ,
उसकी आँखों में जादू 
काली बदली की 
सुरमेदानी से ज्यों 
लगाया हो चुराकर सुरमा। 
चाँद, में क्या कहूँ ....कितना कहूँ ....
तुम खुद ही देखना 
मेरी प्रिया को   ....
उसने वादा किया है
आज की रात
मुझसे मिलने का ।
चाँद , वो आती ही होगी
तुम सोना नहीं
जागे रहना मेरे साथ
करते रहो मुझसे बातें
मेरे और मेरी प्रिया के
बारे में ।
ए रात , तुम ठहरो अभी
लम्हा लम्हा रहो मेरे साथ
मेरी प्रिया आएगी
आज की रात ।
रात ,चाँद और मैं
तीनों जगे रहे ...
जगे रहे जगे रहे ...
आखिर रात ने कहा- मैं चली 
चाँद ने कहा - मैं चला 
और मेरी आँख लग गई ।
दिन चढ़े ,
सूरज ने जगाया मुझे 
और कहा --
'सुनो ,
 नदी में  बहा रही  
एक लड़की
प्रेमपत्र !!!!!!
-- अजीतपाल सिंह दैया

'रेगिस्तान के रंग'

रेतीले टीबों पर वातोर्मियाँ
जैसे प्रकृति ने लिखी हैं कवितायेँ
मदोंमत कर रही हैं
चांदनी रात में ये शीतल हवाएं .
ज़िन्दगी के गम से गीन
यूँ न मायूस हो सखी
चल आ ,खड़ी हो
उम्मीद के गीत गुनगुनाएं
होठों पर मुस्कराहट बिखेर
आ नाचें 'घूमर' हम तुम
जगाएं हृदय में नई उमंग
और घोल दें रेगिस्तान में रंग.
- अजीत पाल सिंह दैया

प्रेमपत्र-1

शाम को
दफ्तर से घर लौटा तो
देखा अपने स्टडी रूम को अस्त-व्यस्त
अलमारी में किताबें
पड़ीं थी बेतरतीब व
कुछ गिरी पडीं थीं
ज़मीन पर
टेबल पर बिखरी पडीं थीं डायरियां
दराज़ में मची थीं उथल- पुथल
मैं हैरान -परेशान
कौन  चोर घुसा होगा यहाँ
माँ को आवाज़ दी मैंने -
'माँ , मेरे कमरे में आया था
क्या कोई ?"
माँ रसोई से ऊँची आवाज़ में बोली-
'शायद वो ही आयी होगी
तुम्हारे बारे में पूछ रही थी
आज दुपहर में .'
तभी मुझे नज़र आया
पेपरवेट के नीचे दबा एक पुरजा
जिस  पर लिखा था मात्र एक शब्द
-"खुदा -हाफिज़"
और ..
वह ले गयी बटोर कर
अपने सारे प्रेमपत्र !!!
--- अजीत पाल सिंह दैया

Monday, August 22, 2011

'धूप'

सदियों से तड़प रहा हूँ मैं
केवल एक टुकड़ा धूप के लिए
मुझे घोर आश्चर्य है कि
इतने लम्बे इंतजार के बाद भी
मेरा घर धूप से महरूम है !
मेरे घर के सारे दरीचे दरवाजे
हमेशा से ही खुले हुए हैं .
टाट के परदे भी नहीं लगाये हैं मैंने
दीवार की जगह भी खाली   रखी है मैंने
तो कमरों की छत भी खोल रखी है मैंने
पता नहीं किस तरफ से
एक टुकड़ा धूप आ जाये मेरे घर में .

आश्चर्य की बात है
इतने जतन के बाद भी
मैं आज तक तरस रहा हूँ
एक टुकड़ा धूप के लिए .
सूरज पर मेरा विश्वास  अडिग है
कभी मन में संदेह नहीं हुआ कि
सूरज मेरे प्रति दुभांत रखता है
उसी ने वंचित कर रखा है मुझे
एक टुकड़ा धूप से
कोई साजिश रचकर .

नहीं ऐसा नहीं होना चाहिए
नहीं यह नहीं हो सकता
हरगिज़ नहीं हो सकता .
उसने तो ज़रूर रखा होगा
एक टुकड़ा धूप मेरे घर के लिए
और ज़रूर भेज दिया होगा
किरण के साथ .
कही किरण तो विश्वासघातिनी नहीं
हो सकता हो मेरा एक टुकड़ा धूप का
दे आयी हो किसी और को वह .

ओह ! सड़क के उस पर
वह अट्टालिका इतनी दीप्त है !
देखूं तो ज़रा
यह क्या ?
उस कनक महल के रेशमी पर्दों के पीछे
कडवा सच नज़र आता है .
सूरज तो शायद निर्दोष हो
पर सचमुच
यह किरण का विश्वासघात है
मेरा एक टुकड़ा धूप
उस भव्य अट्टालिका में कैद है.

- अजीत पाल सिंह दैया

Saturday, August 13, 2011

'वह तुम हो'

दरख्तों के कुञ्ज में
पल्लवों के छत्रक से
छन-छन कर जब
किरण मुझसे खेलती है
लुकाछीपी
तो लगता है वह तुम हो.
तुहिन कणों से सजल
नरम नरम मृदुल दूर्वा
जब बिछ जाती है
मेरी पलकों की स्वप्न सेज पर
तो लगता है वह तुम हो.
चाँद से छिटककर
जब शुभ्र ज्योत्स्ना
लिपट कर मुझसे
जगा देती है सिहरन सी
तो लगता है वह तुम हो.
गिरी के अंकोर में
सौम्य सलिला झील के
निस्तब्ध स्वच्छ नीर में
जब शशि का बिम्ब
हँसता है
तो लगता है वह तुम हो.
रात की रानी से
महक चुराकर आती
भीनी भीनी सुरभित हवा
जब चूमती है
मेरे कपोलों को
तो लगता है वह तुम हो.
--APSD