Saturday, November 20, 2010

नज्मों वाले बाबा

बहुत दिन हुए
गुलमोहर पर रहनेवाली
बुलबुल है परेशान
कि एक मुद्दत से
उनकी कोई नज़्म नहीं आई .
बहुत दिन हुए
मेरे बिम्ब का प्रयोग कर
उसने कोई नज़्म नहीं लिखी
प्रिया के लिए -
यह सोच सोच
चंचल चाँद है हैरान .
चाँद से रहा न गया
एक रोज़ उसने बुलबुल से कहा -
ए बुलबुल ,ज़रा उनके घर जाकर
मालूम तो करो
कि आखिर माजरा क्या है
नज्मों वाले की कलम
इतने दिनों से खामोश क्यों है ?
मैं नयी नज़्म सुनने को हूँ बेक़रार
बुलबुल उनके घर देख आओ न इकबार .
फिर ..अगले रोज रात को
बुलबुल ने चाँद को बताया -
नज्मों वाले बाबा तो बबली को
सिखा रहें है
तख्ती पर चाक से
अलिफ़ बे पे से ..लिखकर ,
और प्रिया रसोई में साम्भर -डोसे बना रही है .
पर पर ....
बाबा के कुरते में
मुझे मिली कुछ पर्चियां ...
चाँद बीच में बोला -
ज़रूर उन पर नज्में लिखीं होंगी !!
बुलबुल बोली -
अरे नहीं तो ,
उन पर्चियों पर लिखा था
"मूंग दाल -एक किलो
चना दाल -आधा किलो
अमूल घी -दो किलो
शक्कर -दो किलो
चाय पत्ती- रेड लेबल बड़ा पेकेट
......!!!!!!!!!! "
-अजीत पाल सिंह दैया

Friday, November 19, 2010

निशां

'कितनी दफा
किया था मना
गली में मत खेलो
बबली के संग ,
चोट लग ही गयी न
सलोने चेहरे पर
अब तुम
यूं ही दूर से
देखा करो
जब तलक
चेहरे के ये निशां
मिट न जाये '
... और प्रिया ने
बिठा दिया फलक पर
बेचारे चाँद को !!!
 
-अजीत पाल सिंह दैया

Sunday, October 24, 2010

चाँद पर बारिश

उस दिन
हम चाँद पर थे,

उसने बित्ते भर का गड्डा खोदा,
अपने पर्स से निकालकर
इमली का एक बीज
गड्डे में रख
ढांप दिया मिटटी से.
मैंने कहा-
पागल हो गयी हो प्रिया!
चाँद पर बीज बो रही हो ? 

प्रिया ने चुप रहने का इशारा किया
और हल्के से मुस्कुरायी.
वह घुटनों के बल बैठी, 

आकाश की ओर उठे
उसके दोनों हाथ,

खुदा से एक मुख्तसर सी
गुजारिश हुई ,और..........
...
उस रोज पहली दफा
चाँद पर बारिश हुई
-अजीतपाल सिंह दैया 

Saturday, April 10, 2010

त्रिवेणियां


अमावस की रात फलक पर देखा कि
तारे झूम रहे थे 'मेक्सिकन वेव 'बनाकर

कहकशां से गुजर रहा था मैं ,प्रिया के संग ।
***
अम्मी से पूछो बबली , आज अमावस है क्या
चाँद नज़र नहीं आ रहा है अब तलक आकाश में
कैसे नज़र आएगा बाबा ,वोह तो मेरी ड्राइंगबुक में है।
***
होठ जल गए थे मेरे बोसा लेते वक्त
गुस्सा धर रखा था तबस्सुम की जगह
सिगापुर से गिफ्ट नहीं लाया था उसके लिए ।
***
मेज़ पर देर तलक बैठा रहा मैं
हाथ में शीशे के पेपरवेट के टुकड़े लिए
टूटे हुए सपने कहाँ कभी जुड़ा करते हैं ।
***
-- अजीत पाल सिंह दैया









Wednesday, March 31, 2010

सिंगापुर -2

ओ प्रिया ,
उस रात
मलय पार्क में
जब मैं
सिंगापुर फ्लायर को
निहार रहा था ,
तो मुझे सुनायी दी
मेरी नज्में ,
मैंने पलट कर देखा -
कि मरलिओन
गुनगुना रहा था मेरी नज्में
मुझे कौतुहल में पाकर
उसने आकाश की ओर
इशारा किया
मैंने ऊपर देखा -
मंद मंद
मुस्कुरा रहा था चाँद!!!
-अजीत पाल सिंह दैया

Tuesday, March 30, 2010

सिंगापुर -1

सकते में थे
उस दिन
तमाम सिंगापुरवासी ,
फुरामा रिवर फ्रंट के
छठे माले के
एक कमरे की खिड़की में
झांकता रहा देर तलक चाँद .
ज़ुरांग बर्ड पार्क में
सभी पक्षी
अचानक गोरैयायें बन
चहचहाने लगे .
चांगी इंटरनॅशनल एयरपोर्ट से
हेव्लोक रोड तक
खिल उठे गुलमोहर के फूल ,
सेंतोसा आइलैंड पर
'द सोंग ऑफ़ द सी 'में
चीनी नर्तक
गुनगुना रहे थे
उर्दू नज्में ,
और 'बीच' पर पानी में
बने बांस के घरों पर
लेसर शो में
उस रात
प्रिंसेस एनी की जगह
नज़र आई
एक भारतीय युवती
और तभी लगून की डोल्फिनें
अचानक चिल्लाने लगी -
प्रिया ! प्रिया ! प्रिया !
अगले रोज़
सिंगापुर के
'द स्ट्रेट्स टाइम्स' में
हेडलाइन छपी -
"नज्मोंवाला अब सिंगापुर सिटी में !!!"-अजीत पाल सिंह दैया

Tuesday, March 16, 2010

अगाती द्वीप

उस दिन
मैं अगाती द्वीप के
बीच पर
करता रहा दिन भर
चहल -कदमी ,
जब मैं
थक कर हुआ चूर
तो मुझे प्यास लगी ,
सामने हिलोरे मारता सागर
पर इसके पानी को
कैसे पीयूं?
मैंने
बीच की रेती पर
अंगुली से प्रिया लिखा ,
सागर की एक लहर आई
और छू गयी
प्रिया के नाम को .
...मैंने उसी लहर का पानी पीया
...मीठा जो हो गया था
वह पानी !!!!


-अजीत पाल सिंह दैया

बंगाराम द्वीप

एक शाम
हम टहल रहे थे
बंगाराम द्वीप पर
कदम हम कदम .
तभी प्रिया ने कहा -
सुनो जी ,
कोई हमारा पीछा
कर रहा है .
मैंने कहा -
ज़रा ठहरो
और मैं
टांग आया
नारियल के
एक ऊँचे दरख़्त पर
चाँद को !!!

-अजीत पाल सिंह दैया

Tuesday, February 23, 2010

फ़रवरी

मन वासंती ,तन वासंती
वासंती हो गयी फ़रवरी ,
लगी नाचने छम-छम धरती
ओढ़ कर सतरंगी चुनरी.
तितलियों के बजते नुपूर
कोकिल के मिसरी से सुर,
सुखद समीरण भीगे पलछिन
फूलों की खुशबुएँ अनगिन,
नई धूप सा रूप देश का
झूम रही लताएँ छरहरी ,
मन वासंती,तन वासंती
वासंती हो गयी फ़रवरी .
नव्य-नवेली परियों के चर्चे
मौसम के हैं तेवर तिरछे ,
सुधा से वसुधा सरसे
इन्द्रधनु के रंग बरसे.
किसलय नवपल्लव वल्लरी
फिर फूली है आम्रमंजरी ,
मन वासंती ,तन वासंती
वासंती हो गयी फ़रवरी .
-अजीत पाल सिंह दैया

Friday, January 15, 2010

मेरी नज़्म

कल से ही
कांप रही है
ठण्ड से
ठिठुर कर
खांस रही है ,
हल्का हल्का
तापमान भी है
मेरी नज़्म को
प्रिया ,
बारिश में
नहाते वक्त
मेरी नज्मों को
ना गुनगुनाया करो तुम।
-अजीत पाल सिंह दैया