Tuesday, December 8, 2015

एक लघु प्रेम कथा- ‘भाग्यश्री अपार्टमेंट्स’

-कल से दूसरा ठिकाना ढूँढना पड़ेगा।

-क्यूँ?

-तुम्हें नहीं मालूम। यहाँ का ठेकेदार चेंज हो गया है। और हमारा काम भी तो पूरा हो गया है। इतनी बड़ी इमारत खड़ी हो गयी है।

-तो नया ठेकेदार हमें नहीं रख सकता?

-पगली, हम कन्स्ट्रक्शन करने वाले मजदूर हैं। अब फिनिशिंग का काम शुरू होगा।

-कुछ दिनों में वह भी खत्म हो जायेगा। फिर बिल्डिंग बस जायेगी।

-हाँ, और बाहर खड़ा लम्बी लम्बी मूंछों वाला दरबान हमें आसपास भी फटकने नहीं देगा।

-हाँ।

-कितनी अजीब बात हैं, दीनू? हमारी मेहनत और पसीने से यह ऊँचा कॉम्लेक्स बनकर तैयार हुआ है। ईंटों को जोड़ने वाले इस गारे में सीमेंट, कंकरी और पानी ही नहीं बल्कि तेरा मेरा और हमारे जैसे बाकी लोगों के बदन से टपका पसीना भी शामिल है।

-खाली पसीना क्यूँ। तुम्हारे लहू की बूंदे भी तो है। उस दिन तुम्हारे सर पर जो ईंट गिर गयी थी। कितना खून बहा था?

-हाँ, सही कहते हो। उस दिन तुम ठेकेदार से लड़कर मुझे टेम पर अस्पताल ले न जाते तो मैं तो रामजी के घर पहुंच ही जाती।

-अरे, नहीं रे। गरीब ही गरीब के काम आता है।

-तुम कितने अच्छे हो।

-तुम भी।

-सुनो, पास आ जाओ न। इस बिल्डिंग में शायद यह हमारी आखरी रात हो।

-नहीं नहीं, मैं ठीक हूँ यहीं पर।

-चल तू नहीं आता तो मैं ही आ जाती हूँ।


*****

-तुम्हारा बदन लोहे की तरह है रे। क्या खाते हो?

-खाने का क्या? जो भी मिल जाता है खा लेता हूँ। अब इत्ती सी मजूरी में कोई बिदाम थोड़ी ही खा सकता हूँ। और बदन का क्या है? अभी तो जवान हूँ। ईंटे उठाकर ऊपर नीचे चढ़ने से तगड़ी वर्ज़िश हो जाती है।

-तुम्हारी पतली पतली मूँछे जंचती है तुम्हारे होंठों पर।

-अरे, थोडा दूर रहो मुझसे।

-क्यों क्या हुआ। छी! तुम्हारा मुंह बॉस रहा है। दारू पी है?

-नहीं तो।

-झूठ मत बोलो। मैं पहचानती हूँ इस गंध को। मेरा बाप मर गया था दारू पी पी कर। माँ को हम तीन भाई बहनों के साथ बेसहारा छोड़ कर।

-मजूरी करते थे?

-नहीं, थोड़ी बहुत खेती बाड़ी थी गांव में।

-फिर?

-छोड़ो भी अब। तुम इतनी छानबीन क्यों कर रहे हो? जोरू बनाएगा क्या मुझको?

-तुम्हीं ने तो अपने बाप की बात छेड़ी थी।

-ठीक है, ठीक है। ......तुम्हारे हाथ पर सर रखने दो। फ़र्श चुभ रहा है।

-अरे हटो। सट मत। कोई ऊँच नीच हो जायेगी।

****

-दीनू यह तूने क्या किया?

-मैं क्या करूँ? मैंने कहा था न, वहीँ सो जाओ अपनी जगह पर। क्यूँ आयी इधर? चिमट चिमट कर सो रही थी।

-भूल हो गयी। पर मुझे डर रहा है।

-क्यूँ?

-कुछ हो गया तो?

-कुछ नहीं होगा?

-फिर भी।

-देखा जायेगा।

-दीनू, मुझे लड़की पसंद है। अगर लड़की हो गयी तो हम उसका क्या नाम रखेंगें?

-रख लेना कुछ भी।

-कुछ भी नहीं। ऐसा नाम बताओ जो हमेशा याद रहे।

-भाग्यश्री कैसा है?

-रामा रे। बहुत ही अच्छा। कहाँ से सोचा इतना प्यारा नाम?

-आसान था। जिस बिल्डिंग में अभी हम सो रहे हैं, इसका ही तो नाम है-भाग्यश्री अपार्टमेंट्स।

-सचमुच दीनू। तूने तो यादगार नाम दिया है रे। पता है, मुझे क्या लग रहा है? कि इस बिल्डिंग के असली मालिक तो हम लोग ही हैं।

-मालिक?

-क्यूँ नहीं? हमारा घर जो बस गया है इसमें।

-पर हमारा ब्याह कहाँ हुआ है री?

-हो तो गया। और कुछ बाकी है क्या?

-कोई गवाह तो नहीं था?

-था तो।

-कौन?

-उस कोने में टाट पर जो काली बिल्ली सो रही है, उसने सब देखा है।

-पर वोह तो सो रही थी।

-रामजी ने देखा था। वो तो नहीं सोये थे।

-क्या सचमुच रामजी ने देखा था सब? छी, फिरसे मत बोलो। मुझे शरम आ रही है।

-तू और शरम।

-हट ना।

-अच्छा यह बता। भाग्यश्री नहीं हुई और कोई लड़का हो गया तो। तो क्या नाम रखोगी तुम?

-सलमान दीनानाथ यादव।

-वाह री। पर कुछ अलग टाइप का नही है। मुसलमान और हिन्दू का नाम एक साथ।

-गरीब का कोई धरम वरम नहीं होता है रे। हमें थोड़ी ही जाना है कोई मंदिर मस्जिद।

-तुम तो बड़ी समझ दार हो। तुम सलमान को जानती हो? सिनेमा देखा है क्या?

-हाँ, बनारस में देखा था। सलमान खान की फिल्लम। मैंने प्यार किया।

-वाह, ए सुन,चल एक बार फिर करते हैं।

-क्या?

-प्यार।

-चुप, छोड़ो मुझे। वरना शोर मचा दूँगीं।

(चमेली यादव के कृत्रिम प्रतिरोध ने कुछ ही क्षणों मे समर्पण कर दिया। काली बिल्ली को शर्म आ गयी और वह धीरे से उठकर, अंधेरे में गुम हो गयी।)


©अजीतपाल सिंह दैया

Monday, December 7, 2015

एक लघु प्रेम कथा- ‘दिल्ली’

-तुम्हें ज़्यादा चर्बी चढ़ी थी देशभक्ति की। क्या जरूरत थी जॉब छोड़ने की?
-ऐसे मत कहो। इट वाज़ फॉर अ चेंज। हमें इंडिया बदलना था। अन्ना के काम को आगे बढ़ाना था।
-तुम क्या सोचते थे? जंतर मन्तर पर तुम्हारे धरना देने से कोई जंतर हो जायेगा। देश की तकदीर बदलने लगेगी रातों रात।
-रातों रात कुछ नहीं बदलता है। पर कहीं तो शुरुआत करनी पड़ती है न। अन्ना और केजरीवाल एक महायज्ञ कर रहे थे। मैं कैसे पीछे रहता।
-और तुमने उनके इस महायज्ञ में अपनी एमएनसी की अच्छी भली नौकरी छोड़ की आहुति दे दी।
-एक करप्शन फ्री कंट्री के लिये यह एक बहुत मामूली चीज़ थी।
-कुछ बदलेगा?
-जरूर। तुम देखती जाना।

*****

-सुना तुमने, केजरीवाल और अन्ना अलग हो गये हैं।
-हाँ।
-अब क्या होगा तुम्हारे इंडिया अगेंस्ट करप्शन का?
-चलेगा यूँ ही आगे। जब तक कंट्री करप्शन फ्री न हो जाये।
-तुम्हें नहीं लगता केजरीवाल ने पॉलिटिकल पार्टी बना कर अन्ना के साथ विश्वासघात किया है।
-नहीं, दोनों अपनी अपनी जगह ठीक हैं। पॉलिटिक्स को पॉलिटिक्स से ही बदला जा सकता है। हम नयी तरह की राजनीति करेंगें।
-तुम कबसे केजरीवाल की भाषा बोलने लग गये।
-सिस्टम को सिस्टम के बाहर रह कर नहीं बदला जा सकता। हमें सिस्टम के अंदर घुसना पड़ेगा। तभी हम करप्शन पर लग़ाम लगा पाएंगे। आम आदमी पार्टी में साफ़ सुथरे लोगों की एंट्री होगी। तुम देखना।
-हाँ देखती हूँ। तुम कैसे राजनीति चेंज करते हो?
-हम जरूर बदलेंगे। इसकी शुरुआत दिल्ली से होगी। हमें आम आदमी का समर्थन है।

*****

-यार, मुझे कतई उम्मीद नहीं थी। तुम लोग सत्ताईस सीटें जीत जाओगे।
-सच कहूँ, उम्मीद तो मुझे भी नहीं थी।
-पर तुम्हारी यह अल्पमत सरकार चलेगी कितना दिन? और बिना पर्याप्त समर्थन के कैसे लागू करोगे अपनी नीतियां।
-हमारी प्राथमिकता लोकपाल को लागू करवाना है।
-कैसे करवाओगे। दोनों ही प्रमुख पार्टियां नहीं चाहती। मेरी मानो तो आप लोगों को पहले दूसरे मुद्दों पर कुछ काम करके दिखाना चाहिए। लोकपाल की ढपली का राग अलापने से कुछ हासिल न होगा।
-हम लोकपाल को नहीं छोड़ सकते। इंडिया अगेंस्ट करप्शन के लिये यह हमारा बुनियादी हथियार है।
-लो सुनो। आई हेव जस्ट रिसिव्ड दिस मैसेज ऑन व्हाट्सऐप कि….
-क्या?
-तुम्हारे केजरीवाल की 49 दिन की सरकार ने लोकपाल को लेकर इस्तीफ़ा दे दिया है। अब बोलो।
-बोलना क्या है? केजरीवाल ने कुछ सोच समझ कर ही यह कदम उठाया होगा। अगले चुनाव में हमारी पूर्ण सरकार बनेंगी।
-आर यू स्योर? तुम 27 सीटें भी बचा पाओगे। मुझे नहीं लगता।
-नहीं। दिल्ली की जनता चेंज चाहती है। हमारी पूर्ण बहुमत की सरकार बनेगी।
-अच्छा। आल द बेस्ट।

*****

-कितने महीने गुजर गए। तुम्हारी पूर्ण बहुमत की सरकार को दिल्ली पर राज करते। मुझे तो कुछ चेंज नहीं लग रहा है।
-चेंज हो रहा है। धीरे धीरे सामने आयेगा।
-तुम्हारे केजरीवाल तो बोलते थे कि हम अलग तरह की राजनीति करने आएं हैं। यही है तुम लोगों की सबकी तरह की अलग राजनीति। मुझे तो तुम लोग भी उसी थैली के चट्टे बट्टे बन गये लगते हो।
-हूँ।
-तर्क नही है अब तुम्हारे पास क्या? अच्छा यह बताओ। जिस लोकपाल को लेकर तुम्हारे केजरीवाल ने 49 दिनों में इस्तीफा दे दिया था। अभी तक क्यूँ नहीं लाये हो उस लोकपाल को जिसकी धुन पर तुम लोग नागिन डांस कर रहे थे।
-छोड़ों न अब इन बातों को।
-क्यूँ जवाब देते नहीं बन रहा है? सांप सूंघ गया है क्या? तुम्हारी सरकार के मंत्री एक एक कर जेल जा रहे हैं या इधर उधर भाग रहे हैं। कैसे चेंज करोगे सिस्टम को यार तुम लोग? अब यह मत बोलना कि साज़िश है यह अपोजिशन की। हमें काम नहीं करने दिया जा रहा है।
-क्या हम अपोलोटिकल नहीं हो सकते? हर समय यही बातें किया करते हैं, जब भी मिलते हैं।
-अच्छा नहीं करती। यह बताओ, तुम्हारे अकाउंट में कितने पैसे हैं? बचे भी हैं या जगह जगह उधारी चढ़ा दिये हो!
-नहीं नहीं। पड़े हैं कुछ पैसे अभी।
-देखो झूठ मत बोलो। फलाना एमएनसी के एक्स डिप्टी मैनेजर, मुझे नहीं लगता। क्या मुझे नहीं मालूम कि तुम कितना सैलरी पाते थे। मैं बात करूँ क्या, बॉस से। तुम फिर से यहां ज्वाइन कर लो। फिर से असिस्टेंट मैनेजर से शुरू करना पड़ेगा। नहीं तो अब तक सीनियर मैनेजर हो लिए होते।
-क्या फर्क़ पड़ता है?
-मतलब अभी तुम्हारा पॉलिटिक्स का भूत उतरा नहीं है। रुको, रुको। बिल में पे करती हूँ।
-नहीं, मैं देता हूँ न।
-क्यों, लड़की के पैसों से डिनर खाना अच्छा नहीं लगता क्या?
-नहीं, ऐसी बात नहीं है।
-अच्छा यह बताओ। तुम्हारे फ्लैट का भाड़ा कितने दिनों से बकाया है? सच बोलना।
-पांच महीने हो गए।
-यह लो मेरा डेबिट कार्ड। कल अपना सारा कर्ज़ा चुकता कर देना।
-नहीं नहीं। यह ठीक नहीं है।
-प्लीज, मेरी रिकेस्ट है। मैं नहीं चाहती कि तुम अपने सर पर इतनी देनदारियां लेकर फिरो।
-अच्छा।
-एक बात और। मानोगे।
-पहले बताओ तो।
-तुम गुड़गांव वाला अपना फ्लैट खाली कर दो। मेरे फ्लैट में शिफ्ट हो जाओ। आजकल मैं अकेली रह रही हूँ। मीरा मुंबई चली गयी है। प्लीज, कम विद मी। मुझे अच्छा लगेगा। एन्ड द अदर थिंग। इफ यू डोंट वांट टू ज्वाइन बेक दिस कम्पनी, देन आल्सो द्वारका इज़ नियरर टू जन्तर मन्तर। यू केन कंटिन्यू विद योर इंडिया अगेंस्ट करप्शन कैम्पेन। आइ ठु वांट ए चेंज, यार। मुझे इंतज़ार है उस दिन का। व्हेन, अवर कंट्री शैल बी टोटल करप्शन फ्री।
-अब, मैं एक बात कहूँ।
-क्या?
-आइ लव यू, अवंतिका।
-शट अप, अर्जुन।

© अजीतपाल सिंह दैया