Sunday, March 10, 2013

ग्लोबल वार्मिंग

मैं देर से घर आता हूँ
आफिस से आदतन प्रिया
और तुम्हारा पारा चढ़ जाता है
उफ़्फ़ , तुम्हारे गुस्से की आंच में
पिघल रही है
ध्रुवों की बरफ ,
और परेशान हो रहे हैं
ग्लोबल वार्मिंग कहकर
साइन्स्दाँ ख्वाम्खाह !!!

-
अजीतपाल सिंह दैया

Saturday, March 9, 2013

आदत

मुनासिब नहीं है आजकल
रात को छ्त पर लेटना
आसमां से चिंगारियों को देखा है मैंने
ज़मीन की ओर गिरते ,
चाँद को आदत हो गयी है शायद
सिगरेटें फूंकने की!

-
अजीतपाल सिंह दैया

वसंत

आओ
फिर एक बार वसंत.
गिर गए
जीर्ण –शीर्ण पान
कोमल टहनी
किसलय सजे
नवसृजन गान.
सस्मित
नीलगगन
हर्षित दिगंत.
 

खिले भांति भांति
पुष्प चहुं ओर
कुंज –निकुंज
तितलियाँ करती
नृत्य चितचोर.
अहो , नववधू सी
वसुधा श्रीमंत !!!
 

-अजीतपाल सिंह दैया

कैनवास

हर रोज़
अपने बालों में
तुम एक फूल
लगा लेती हो ,
अब बस भी करो प्रिया
चंद डालियाँ भर
बची है
मेरे कैनवास पर !!!
-APSD

"लाल गुलाब"

किसी चलचित्र में देखा था
अमोल पालेकर को
ज़रीना वहाब के जूड़े में
एक फूल लगाते।
ये चलचित्र भी कितने अजीब होते हैं
कितनी इच्छाएं –उत्तेजनाएं
पैदा कर देते हैं,
मेरी भी हसरतें जाग गयीं
तुम्हारे जूड़े में एक रोज़
एक फूल लगाने की
तमन्ना पाले बैठा हूँ,
क्या हुआ मैं जो पालेकर नहीं
या तुम जो नहीं हो ज़रीना।
मैं फिर भी आश्वस्त हूँ,
एक दिन मैं तुम्हारे जूड़े में
फूल लगाऊँगा ,
पर कभी कभी लगता है
कि तुम रच रही हो षड्यंत्र
मेरे विरुद्ध
मेरी हसरतों के खिलाफ़।
मैं गली के मोड़ पर
खड़ा रहता हूँ
हाथ में एक लाल गुलाब का फूल लिए
कि तुम्हारे जूड़े में लगाऊँगा,
पर यह क्या,
तुम रोज़ ही गुजरती रही
कंधे तक लटकते लहराते
खुले बालों के साथ,
मुझे कुछ समझ में नहीं आता,
तुम्हें जूड़ा बांधना पसंद नहीं है
या मेरे हाथों अपने जूड़े में
लाल गुलाब लगाया जाना,
या मुमकिन है तुम भाँप गयी हो
मेरे इरादों को ,
और तिरस्कृत कर देना चाहती हो
मेरी हसरतों को ,
क्या तुम्हारे खुले बाल
यूं ही खुले रहेंगे और
मैं ले जाता रहूँगा अपने गुलाब
वापस अपने साथ,
तुम्हारे ठुकराये हुए गुलाब
गमले की मिट्टी में फिर से
घुलमिल कर नए गुलाब बन
खिल जाते हैं और
मुझे उपलब्ध रहते हैं
हर बार नए गुलाब
तुम्हें समर्पित करने के लिए।
मैं आज भी
तुम्हें उसी मोड़ पर
हाथों मे एक गुलाब लिए
यूं ही खड़ा मिलूँगा,
तुम अपने खुले बालों को बांध कर
एक अदद जुड़ा बनाकर
आना तो सही।
-अजीतपाल सिंह दैया