Sunday, November 25, 2012

बीज

नन्हा सा बीज
पर बीज की जीजिविषा
छः अंगुल मिटटी से
नहीं है दबती
अंजुरी भर पानी
पीकर जुटता है आत्मबल
मिटटी के बोझ को चीर कर
धरती की कोख से
अंततः आ ही जाता हे बाहर
और एक दिन
विशाल दरख़्त बनकर
अपने बूते पर
खड़ा हो जाता है
नन्हा सा बीज.
- ajit pal singh daia