नन्हा सा बीज
पर बीज की जीजिविषा
छः अंगुल मिटटी से
नहीं है दबती
अंजुरी भर पानी
पीकर जुटता है आत्मबल
मिटटी के बोझ को चीर कर
धरती की कोख से
अंततः आ ही जाता हे बाहर
और एक दिन
विशाल दरख़्त बनकर
अपने बूते पर
खड़ा हो जाता है
नन्हा सा बीज.
- ajit pal singh daia