Tuesday, May 26, 2009

हैंगर

जब दीवार पर लगे हैंगर पर
मैं अपनी एक और पतलून कमीज
टांग कर मुड़ा तो
मुझे हैंगर की बुदबुदाहट सुनाई दी-
अजीब आदमी है
हैंगर को गधा समझता है
हे प्रभु ! इसकी बीवी आ क्यों नहीं जाती ?
--अजीत पाल सिंह दैया

Thursday, May 21, 2009

चाँद से

अमावस की रात
छत पर खड़ी तुम
चाँद सी दिखती हो
एक दिन
चाँद पर जाऊंगा मैं
और झांकुंगा
तुम्हारे आँगन में ,
देखूंगा कि तुम
चाँद से कैसी दिखती हो!
अजीत पाल सिंह दैया

Saturday, May 9, 2009

हाइकु


आँगन में मोर ।

मां ने डाली होगी ज्वार

जग कर अल भोर ।

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रात में चूहों का गीत।

कुतर रहे होंगे सभी

दादा का पुराना सितार ।

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मेरी पतंग नहीं उडी ।

कल शाम को

वोह छत पर नहीं आई।

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दाल में मिर्ची ठीक ।

एक चम्मच नमक डाल

पत्नी पर झल्लाया ।

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तुम्हारी आंखों में आकाश

मैंने ऊपर देखा तो

ऊपर भी आकाश ।

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