Saturday, June 11, 2011

एक आदिवासी युवती

पिपरिया से छिंदवाड़ा की ओर आते वक्त
मैं गुजर रहा था
तामिया के पास
एक आदिवासी गाँव से ,
सड़क पर रह चलती
एक आदिवासी युवती को
देखकर मैंने रोकी अपनी गाड़ी ।
अपने समीप एक कार को
रुकी देख अचानक से
सकपका गयी वह
तुरंत से हटी पीछे ढाई कदम
और देखने लगी मुझे
भय मिश्रित विस्मय से ।


गहरे तांबई रंग का गठीला बदन
घनी भौहें ,उलझे बाल और उन्नत भाल ,
सर पर धरी थी
जलावन की छोटी ढेरी ।
मैंने कहा – सुनो ,
छिंदवाड़ा जाने का रास्ता किधर है ?
उसने अपनी नज़र
अपने उभारों पर डाली
और हड़बड़ी में
अपने वक्षस्थल को पोमचे से
ठीक से ढकते हुए बोली –
‘ऊ ही रस्ता है बाबू .......”


मैंने अपना चश्मा उतार कर
हल्का सा मुस्कुराया ,
आदिवासी युवती के गेरुएँ होठों के बीच
श्वेत दंतावली के साथ
बिजली सी मुस्कान कौंधी ।
मैंने कहा –‘थेंक यू “
और अपना हाथ हिलाकर
उसका अभिवादन करते हुए
बढ़ा लिया गाड़ी को आगे ।
आदिवासी युवती की आँखों में
जिज्ञासा जन्मी
जाने वह क्या समझी
वह हल्के से होंठ चबाकर
हंस दी खिलखिलाकर
और करती रही अभिवादन
अपने हाथों को लगातार हिलाकर ।
मैं देखता रहा उसको
मिरर के रिवर्स व्यू में
जब तलक औझल न हो गयी वह !!!!!                          -अजीत पाल सिंह दैया

Friday, June 10, 2011

मक़बूल फिदा हुसैन

तेज़ तूफान के बाद
गिर गया एक बूढ़ा दरख़्त,
बारिश थमने के बाद
आसमान साफ था
और ढलते सूर्य की
विपरीत दिशा मे
नज़र आ रहा था
एक इंद्रधनुष ।
आम दिनों की तरह
आज के इस इंद्रधनुष मे
रौनक नहीं थीं ,
उदासी छन छन कर
बिखर रही थीं,
और तमाम रंग फीके
नज़र आ रहे थे ।
धीरे धीरे मैंने देखा
कि एक एक कर
सभी रंग हो गए गायब ।
अटलांटिक समुद्र से
एक अबाबील उड़ते उड़ते आई ,
उसने मुझे बताया
कि तमाम सात रंग
एक कब्र पर
फातिहा पढ़ते पाये गए हैं।
- अजीतपाल सिंह दैया