Saturday, October 17, 2015

एक लघु प्रेम कथा- ‘माउंट आबू’

-ए सुनो, अगर हम भी ऐसे ही करेंगे तो उनमें और हम में फर्क क्या रहेगा?
-किनमें?
-उधर देखो, एक ही स्ट्रा से नारियल पानी पी रहे हैं।
-यू मीन पब्लिक डिसप्ले ऑफ़ अफेक्शन।
-हाँ, पर उसमें तो कुछ और भी किया जा सकता है।
-मैं उस हद तक नहीं जा सकता।
-पर कुछ तो हम भी कर सकते हैं। चल एक ही केन से मुंह लगा कर कोक पिया जाये। या पिज़्ज़ा खाते हैं। एक कोर तुम एक कोर मैं।
-पर यह भी तो घिसा पिटा ही फार्मूला है। बल्कि अमीर लौंडे-लौंडियों की चोंचला टाइप हरकतें हैं। रोज ही तो देखता हूँ अपने अहमदाबाद में लॉं गार्डन पर।
-तो नया क्या करें क़ि यह नक्की झील हमें हमेशा याद करें। मतलब मैं तुम और हमारा प्रेम।
-उसके लिए तो मुमताज़ और शाहजहाँ बनना पड़ता है। मुमताज़ मरेगी तो ताजमहल खड़ा होगा।
-व्हाट डू यू मीन। शेल आई ड्रोन इन दिस लेक। डूब कर मर जाऊँ यहाँ।
-नहीं बाबा, मेरा या मतलब नहीं था। और डूबना ही है तो माउंट आबू में क्यूँ? तुम्हारी रूह नक्की झील में भटकती रहेगी। वैसे कांकरिया झील भी सुंदर जगह है।
-किस लिए?
-डूबने के लिए।
-चल हट। मैं क्यू डूबूँ। अच्छा, तुम्हें मालूम है, ताजमहल के बारे में किसी ने क्या कहा है?
-किसने ?
-किसने क्या? साहिर लुधियानवी ने।
-क्या कहा था?
-यही कि एक शहँशाह ने हसीं ताजमहल बनाकर हम गरीबों की मुहब्बत का उड़ाया था मज़ाक।
-तो ऐसा करो न, तुम भी उड़ाओ अमीरों की मुहब्बत का मज़ाक।
-ग्रेट। लेट मी थिंक। अच्छा तुम यहीं ठहरो। मैं अभी आती हूँ। सुनो, उस नीले दुपट्टे वाली की तरफ ध्यान मत दो। मैं देख रही हूँ कि तुम्हारा ध्यान बार बार उधर जा रहा है।

-चल, अब कुछ मटरगश्ती करें।
-मतलब?
-मतलब क्या? झील के किनारे किनारे चलो मेरे साथ। ये मटर रखो। छील छील कर एक दूसरे को खिलाएँगे।
-मतलब, यही तुम्हारी मटरगश्ती है।
-लो यह लाल टमाटर भी पकड़ो।
-इसका क्या करूँ?
-पहले कुछ रस तुम चूसो। फिर तुम्हारे झूठे टमाटर का रस मैं चूसुंगी।
-आर यू सिल्ली? लोग क्या कहेंगे?
-कहने दो न। अच्छा पहले मैं चूसती हूँ। .....अब लो पकड़ो यार यह टमाटर।
-पागल, हम पीस लग रहे हैं। देखो, सभी हमें ही घूर रहे हैं।
-घूरेंगें हीं। अमीरों की मुहब्बत का मज़ाक जो उड़ा रहे हैं।

© अजीतपाल सिंह दैया

Friday, October 9, 2015

एक लघु प्रेम कथा- ‘झाँसी’

-देख रहे हो न। किले की कोई दीवार क्या कोई छत तक नहीं छोड़ी।
-इसके बिना प्रेम, प्रेम थोड़ी ही न होता है।
-मतलब जब तक चाक या कोयले से यहाँ जोड़े में नाम नहीं लिख दिया जाये, प्रेम की प्रॉपर रस्म अदायगी नहीं होती है।
-शायद। पर देखो, कहीं भी तो कोई खाली जगह नहीं छोड़ी है। मुझे तो लगता है झाँसी के सारे ही लोग प्रेमी हैं। सबने अपनी अपनी मेहबूबाओं का नाम लिख दिया है यहाँ पर अपने नाम के साथ।
-क्यूँ, किसी महबूबा भी तो लिखा होगा नाम अपने महबूब का। चलो छोड़ो, अरे तुम रानी का किला देखने आई हो या प्रेमियों की निशानियां बांचने।
-रुको, शायद मेरा भी कहीं नाम हो किसी के साथ।
-बस करो। इस बारादरी से बाहर निकलो, जानेमन। श्वानों के मलमूत्र की सडांध से मेरा दम घुटा जा रहा है।
-देखो, मेरा हाथ पकड़ कर खींचा मत करो। चिट्टियां कलाइयाँ मुड़ जाएंगी मेरी। चल तो रही हूँ न।
-लो इधर देखो। ‘कड़क बिजली’ पर भी नाम खोदे हैं। लोहे की इस तोप पर अपने प्रेमी या प्रेमिकाओं के नाम लिखना कितना मुश्किल होता होगा न।
-मुझे तो ये लोहार और लोहारन का नाम ही लगता है। कमबख्त ने तोप बनाने के टाइम ही ढाल दिए होंगे ये नाम।
-अरे उधर देखो। गणेश मंदिर की ओट में दो प्रेमी गुफ़्तगू कर रहे हैं। शायद अपना नाम लिखने के लिए किले में खाली जगह की रिसर्च कर रहे हैं।
-सिल्ली। नाम लिखने के लिए नहीं, बल्कि एक दूजे के बदन के भूगोल का रिसर्च कर रहे हैं। लगता है तुम अहमदाबाद में रहकर भी कभी लव गार्डन नहीं गयी हो।
-तुम्हें तो ऐसे ही खयाल आएंगे। जाकी रही भावना जैसी। बाइ द वे। देट्स लॉं गार्डन, नोट लव गार्डन।
-सो व्हाट? लॉं गार्डन में तुमने किसके हाथ में इंडियन पिनल कोड या क्रिमिनल प्रोसिजर कोड देखा है कभी? अच्छा, बहुत हो गया अब यह किला दर्शन। चलो, चलते हैं यहाँ से। बहुत देख लिया इस खंडहर को। होटल चलते हैं।
-मैं सोच रही हूँ। हमारा नाम भी लिख ही दूँ किले में, किसी खाली स्थान पर। रानी लक्ष्मी बाई भी क्या याद करेगी कि उसके किले में एक अमदावादी जोड़ा आया था।
-अरे ठहरो, क्यूँ कोयले से हाथ काला करती हो?
-रुको तो सही। मैं अभी आई।

-यह क्या, कोई और जगह नहीं मिली। गौस मुहम्मद की कब्र पर लिख दिया।
-और कोई जगह बची कहां थी।
-लेट मी सी। देखूँ तो क्या लिखा है?
-सिमरन लव्स राज। पर ये तो हमारे नाम नहीं हैं।
-क्या फ़र्क़ पड़ता है। शीरीं फ़रहाद हो या सिमरन राज। प्रेम तो किया है न हमने, राज।
-हाँ सिमरन, सच कहती हो तुम।

क्या आप झाँसी में रहते हैं और किले की दीवारों पर अपने प्यार का प्रमाण पत्र नहीं लिखा। धिक्कार है आपके प्रेम पर।

© अजीतपाल सिंह दैया

एक लघु प्रेम कथा- ‘रेस्तरां’

-वेटर, एक कॉफी और लाओ।
-कॉफी ही कॉफी। काफी नहीं हो गयी कॉफी। लगता है तुम मुझे कॉफी में ही निपटा देना चाहती हो।
-नहीं। नहीं। ऐसी बात नहीं है। डिनर भी प्लान करेंगें।
-मैं बेहद खुश हूँ। तुम्हें इतना ख़ुश देखकर।
-मैं सबसे पहले तुमसे शेयर करना चाहती थी यह ख़ुशी।
-आइ एम ट्रूली प्राउड ऑफ यूअर अचीवमेंट। ख़ुशबू सेहरावत, जीएम (फ़ाइनेंस)। इट साउण्ड्स औसम।
-चुप करो। बहुत ज्यादा ही बटर नहीं लगा रहे हो!
-लो, अब सच्ची तारीफ करना भी गुनाह है।
-एक बात कहूँ।
-हाँ, कहो न।
-तुम्हें याद है, जब तुम मुझे पहली बार देखने आए थे।
-हाँ, अच्छी तरह। पापा की जिद थी। तुम उनके दोस्त की लड़की थी। माँ भी सहमत थी। कहा था कि भले घर की लड़की है। अच्छी-पढ़ी लिखी है।
-तो तुम आ गए मुझे देखने। मेरे पापा भी न, ख़ुशी से फूले न समा रहे थे। भारतीय राजस्व सेवा का एक अधिकारी जो उनका दामाद बनने वाला था।
-पर
-पर क्या?
-तुम्हारी वह बात मुझे कतई अच्छी नहीं लगी। सच में, तुमने मेरा मूड ऑफ कर दिया था।
-व्हाट डू यू मीन....मुझे कुछ याद नहीं आ रहा।
-बन रहे हो या सचमुच याद नहीं है।
-तुम याद दिलाओ तो शायद याद आ जाए।
-नाटकबाज़! तुम्हें सब याद है। अटीट्यूड शो ऑफ कर रहे हो।
-अटीट्यूड ही सही। पर कुछ बताओ भी अब।
-यही कि तुमने कहा कि मैं शादी के बाद तुमसे जॉब नहीं करवाऊँगा। मुझे घर में ही रहना होगा। तुम्हारे बच्चे पालने होंगे।
-ओह, हाँ कहा तो था। हाँ याद आया। मेरी यह बात सुन कर तुम्हारा चेहरा गहरी निराशा से भर गया था। मैंने नोटिस किया था। तुम्हें मेरी बात से शॉक लगा था। तुमने सोचा होगा कि कैसा लड़का है। भारत सरकार में ग्रुप ए ऑफिसर और कितनी छोटी सोच।
-सीरियसली। मुझे अच्छा नहीं लगा।
-लगता भी कैसे। मैंने बात ही ऐसी करी थी।
-पर अच्छा ही हुआ। देखो, हम कितने ख़ुश हैं।
-हाँ, तुम्हें इतना ख़ुश देखकर मेरा ख़ुश होना लाज़मी है।
-उस दिन की घटना के बाद, तुम्हारी मॉम का फोन आया था मेरी मॉम के पास कि तुम मुझसे शादी करने के लिए तैयार नहीं हो।
-क्यूँ, मेरा डिसीजन ठीक नहीं था क्या? हम शादी करके शायद कभी ख़ुश नहीं रह पाते, ख़ुशबू। तुम्हारी आँखों में महत्वाकांक्षाएं थी। आइआइएम अहमदाबाद से पोस्ट ग्रेजुएट लड़की को मैं केवल अपने किचन में रोटियाँ बेलते और बच्चों की परवरिश करते नहीं देख सकता था। मुझे एक होम मेकर वाइफ़ चाहिए थी। इसका यह मतलब नहीं है कि मैं महिलाओं द्वारा जॉब करने के खिलाफ़ हूँ। मेरी अपनी च्वाइस है। आफ्टरऑल, सबको अपनी पसंद का पार्टनर चुनने का हक है। वर्किंग वुमन हो या नॉन वर्किंग वुमन, हरेक की अपनी अपनी प्राथमिकताएं हो सकती हैं।
-मुझे मालूम चला था। तुम्हारे शादी के लिए एग्री न होने के पीछे का कारण।
-हाँ। मैं नहीं चाहता था कि मैं एक बहेलिया बनूँ। एक बुलबुल को पिंजरे में डाल कर बंद कर के रख दूँ। और बुलबुल की महत्वाकांक्षाओं के पंख पिंजरे के तारों से टकरा टकरा कर जख्मी हो जाए।
-अब प्रेमचंद जैसी कहानियाँ मत बनाओ। तुम्हारा आइ.आर.एस. में सलेक्शन कैसे हो गया? एक्चुअली, तुम्हें तो दैनिक जागरण में हिन्दी का संपादक होना चाहिए था।
-हाँ, उड़ा लो मज़ाक मेरा। आज तो हक बनता है जीएम मदाम का।
-सुनो। फ्राइडे नाइट को डिनर करते हैं। तुम अवंतिका को लेकर आना।
-तुम अवंतिका को भाभी क्यूँ नहीं बोलती?
-क्यूँ? अवंतिका जिद कर रही है क्या? तुम्हारे घर आना जाना बंद करना पड़ेगा मुझको। पता चला कि किसी दिन तुम्हारी बीवी मेरे हाथ में राखी ही न थमा दे।
-हो भी सकता है।
-ना बाबा। मुझे कोई शौक नहीं है, रिश्तों को नाम देने का। अच्छा सुनो, क्या उसे पता है कि तुम मुझे देखने आए थे?
-हाँ।
-और आज तक देखते आ रहे हो। (एक ठहाका गूँजता है।)
-तुम्हारी हंसी बहुत खूबसूरत है। ऐसा लगता है कि एक पहाड़ी झरना होले होले उतर रहा हो सुरम्य वादियों से मैदान की ओर।
-चुप। मारूँगी अभी।

रेस्तरां के वातावरण में उनके टेबल-क्लोथ पर चित्रित फूलों की सुगंध धीरे धीरे तीव्र होती जा रही थी। पीले रंग की दो तितलियाँ जाने कहाँ से आयीं और उनकी टेबल के इर्दगिर्द मंडराने लगीं।

© अजीतपाल सिंह दैया

Thursday, October 8, 2015

एक लघु प्रेम कथा- ‘अमरकंटक ’

अमरकंटक में नर्मदाजी पर स्थित कपिलधारा वाटरफॉल निहारते हुए।

-तुम्हारी हैयरपिन देना जरा।
-अरे, इस खूबसूरत झरने को देखों न। कितना हसीन है। बाइ द वे, तुम हैयरपिन का क्या करोगे। कान का मैल निकालना है?
-नहीं रे। तुम पहले हैयरपिन दो तो सही।
-ये लो। पर देखो मेरे सारे बाल बिखर गए हैं।
-अच्छी तो लग रही हो। बल्कि खुले बालों में तो तुम पद्मिनी कोल्हापुरे लग रही हो।
-पर तुम मिथुन चक्रवर्ती नहीं लग रहे हो। आइ मीन ‘प्यार झुकता नहीं’ वाला मिथुन।
-तो।
-तो क्या! हाँ, थोड़े से अमोल पालेकर जरूर लग रहे हो।
-अच्छा। तो देखो अब यह अमोल पालेकर क्या करता है?
-क्या?
-प्यार मिटता नहीं।
-क्या? प्यार मिटता नहीं!
-हाँ। जामुन का यह दरख़्त देख रही हो न। इस पर हमारा प्यार अमर करता हूँ, इस अमरकंटक में।
-पर गुजराती में मत लिखना।लोगों को पढ़ने में दिक्कत होगी। और हाँ, सबसे ऊपर लिखो। मेरे प्यार से ऊंचा किसी का प्यार नहीं।
-जामुन के दरख्त का तना कितना नर्म है। बड़ी ही आसानी से अक्षर खुरेद पा रहा हूँ। काश नाम लिखने की तरह इश्क़ भी आसान होता।
-प्रेमिकाएं कोई रजनीगंधाएँ थोड़ी ही होती हैं जो पान की दुकान पर आसानी से मिल जाएगी। अरे अरे। सँभाल के। गिर जाओगे।
-नहीं। बस गोली से बचने के लिए झुका था।
-गोली?
-हाँ। तुम्हारे बाप डैनी डेंजोंगम्पा के गुंडे ने मुझ पर गोली चला दी थी।
-मज़ाक नहीं। मुझे कतई पसंद नहीं कि तुम मेरे पापा की इन्सल्ट करो।
-सॉरी।
-लेट मी सी। देखूँ तो क्या लिखा है तुमने। ‘राज लव्स सिमरन’। पर यह तो हमारा नाम नहीं।
-क्या फ़र्क पड़ता है, सिमरन। प्यार तो किया हैं न।
-हाँ राज।

अमर कंटक की वादियाँ खिलखिला उठीं। नर्मदा के पेट में हँसते-हँसते बल पड़ने लगे।

© अजीतपाल सिंह दैया