घृणा को पिघला कर रख दो
नारी अपने प्यार से .....!
आज जगत में विष व्यापा है
भाग-दौड़ आपा-धापा है
आज विश्व में और मनुज में
दुःख उमड़े हैं ज्वार से .
घृणा को पिघला कर रख दो
नारी अपने प्यार से .....!
कोई मनु है बीच भंवर
नौका है ,पर बिन धीवर
कामायनी तट पर पहुंचा दो
श्रद्धा की पतवार से .
घृणा को पिघला कर रख दो
नारी अपने प्यार से .....!
पीलो प्याला भरा गरल
विष अमृत में जाय बदल
मीरा ,विक्रम को दिखला दो
पुष्प हार बना सर्प हार से .
घृणा को पिघला कर रख दो
नारी अपने प्यार से .....!
वनवास मिला है फिर राम को
छोड़ चले सुख धाम को
सीता ,कंकर के भूषण
स्वीकार करो मुक्ता-हार से .
घृणा को पिघला कर रख दो
नारी अपने प्यार से .....!
आवश्यकता हुई वीरांगना
उतर फेंको कर से कंगना
रिपु दमन कर दो लक्ष्मी
अपनी पराक्रमी तलवार से .
घृणा को पिघला कर रख दो
नारी अपने प्यार से .....!
आज उठा है बनवीर निर्दय
संकट में है सिंह उदय
पन्ना चन्दन को अमर करो
धर्म की कटार से .
घृणा को पिघला कर रख दो
नारी अपने प्यार से .....!
- अजीतपाल सिंह दैया
naari mein to yah khoobi hai hi, achhi rachna
ReplyDeleteवाह ...बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteGreat poem...
ReplyDeletesundar geet.
ReplyDeleteRashmi ji, Sada ji,Anoop sir and Surendra ji behad shukriya..
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