Thursday, February 27, 2014

पेन्सिल



न्योछावर करती रही
टुकड़े टुकड़े अपनी जिंदगी.
छिलती रही घिसती रही
अक्षर अक्षर ,शब्द शब्द
गीत –कविता में ढलती रही.
आधी –टेढ़ी –तिरछी
पतली मोटी  रेखाओं में
चित्रकृतियाँ बनती रही.
व्यर्थ नहीं गई जिंदगी
समय के पन्नों पर छपती रही
मर कर भी जीती रही. 
-AJIT PAL SINGH DAIA