Tuesday, January 17, 2012

गुलाब

गमले में लगा हुआ था
एक बहुत ही सुंदर लाल गुलाब
महक रहा था मधीर मधीर
दिल ने चाहा
तोड़ लूँ उसे लपक कर
और भेंट कर दूँगा उसे
आज की मुलाक़ात पर .....
नीचे झुका गुलाब को छूआ
और ज्यों ही तोड़ने को हुआ
दिल ने ना कर दी
अरे रहने दो इसे
कितना सुंदर है
यहीं ठीक है यह .....
मुलाक़ात हुई
उसका चेहरा
अपने दोनों हाथों मे थामा
ओह ...
‘तुम भी तो
गुलाब से कतई कम नहीं......!”
- मैंने कहा ।
@ अजीतपाल सिंह दैया

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