Monday, March 30, 2009

मंजिलें

मंजिलें

यूँ ही नहीं मिल जाती हैं

जतन करने पड़ते हैं

और जतन भी

कुछ ऐसा करें

कि मंजिलें

शक्कर बन जाएँ

और आप चींटियाँ

देखिये फ़िर

कितना जल्दी

मिलती हैं मंजिलें


--अजीत पाल सिंह दैया

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