मंजिलें
यूँ ही नहीं मिल जाती हैं
जतन करने पड़ते हैं
और जतन भी
कुछ ऐसा करें
कि मंजिलें
शक्कर बन जाएँ
और आप चींटियाँ
देखिये फ़िर
कितना जल्दी
मिलती हैं मंजिलें
--अजीत पाल सिंह दैया
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