नज़्म-याद में
उस दिनपब्लिक पार्क में
गुल मोहर के नीचे
मुनिसिपालिटी की
टूटी बेंच पर
एक कोने पर बैठे बैठे
जब मैं तुम्हें याद कर
एक प्रेम गीत लिखने लगा
तो अचानक हवा चली
और गुलमोहर के फूल
गिरने लगे ज़मीन पर
तितलियाँ आयीं कहीं से
और मंडराने लगी
मेरे इर्द गिर्द ।
मैंने कहा - यह क्या हुआ ?
हवा हंसने लगी
गुलमोहर खिलखिलाने लगा
तितलियाँ गुनगुनाने लगी
अरे ! कोई बोलो तो सही ।
एक हवा ने छुआ मेरे गाल
को और चुपके से
कहा मेरे कान में
पगले ! एक मुद्दत के
बाद किसी दीवाने
ने लिखने की कोशिश की है
एक 'प्रेम गीत '
प्रेम में सराबोर होकर
इस टूटी बेंच
पर जिस पर अभी भी
पढ़ा जा सकता है
यह लिखा हुआ धुंधले हरूफों में
" निर्मित मेरी प्रिया ............. की याद में। "
अजीत पाल सिंह दैया
Kya sach me aaki 'priya'hai? hai to bade khushnaseeb hain aap...!
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