Sunday, August 28, 2011

प्रेमपत्र-1

शाम को
दफ्तर से घर लौटा तो
देखा अपने स्टडी रूम को अस्त-व्यस्त
अलमारी में किताबें
पड़ीं थी बेतरतीब व
कुछ गिरी पडीं थीं
ज़मीन पर
टेबल पर बिखरी पडीं थीं डायरियां
दराज़ में मची थीं उथल- पुथल
मैं हैरान -परेशान
कौन  चोर घुसा होगा यहाँ
माँ को आवाज़ दी मैंने -
'माँ , मेरे कमरे में आया था
क्या कोई ?"
माँ रसोई से ऊँची आवाज़ में बोली-
'शायद वो ही आयी होगी
तुम्हारे बारे में पूछ रही थी
आज दुपहर में .'
तभी मुझे नज़र आया
पेपरवेट के नीचे दबा एक पुरजा
जिस  पर लिखा था मात्र एक शब्द
-"खुदा -हाफिज़"
और ..
वह ले गयी बटोर कर
अपने सारे प्रेमपत्र !!!
--- अजीत पाल सिंह दैया

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