Sunday, August 28, 2011

'रेगिस्तान के रंग'

रेतीले टीबों पर वातोर्मियाँ
जैसे प्रकृति ने लिखी हैं कवितायेँ
मदोंमत कर रही हैं
चांदनी रात में ये शीतल हवाएं .
ज़िन्दगी के गम से गीन
यूँ न मायूस हो सखी
चल आ ,खड़ी हो
उम्मीद के गीत गुनगुनाएं
होठों पर मुस्कराहट बिखेर
आ नाचें 'घूमर' हम तुम
जगाएं हृदय में नई उमंग
और घोल दें रेगिस्तान में रंग.
- अजीत पाल सिंह दैया

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