Friday, October 9, 2015

एक लघु प्रेम कथा- ‘झाँसी’

-देख रहे हो न। किले की कोई दीवार क्या कोई छत तक नहीं छोड़ी।
-इसके बिना प्रेम, प्रेम थोड़ी ही न होता है।
-मतलब जब तक चाक या कोयले से यहाँ जोड़े में नाम नहीं लिख दिया जाये, प्रेम की प्रॉपर रस्म अदायगी नहीं होती है।
-शायद। पर देखो, कहीं भी तो कोई खाली जगह नहीं छोड़ी है। मुझे तो लगता है झाँसी के सारे ही लोग प्रेमी हैं। सबने अपनी अपनी मेहबूबाओं का नाम लिख दिया है यहाँ पर अपने नाम के साथ।
-क्यूँ, किसी महबूबा भी तो लिखा होगा नाम अपने महबूब का। चलो छोड़ो, अरे तुम रानी का किला देखने आई हो या प्रेमियों की निशानियां बांचने।
-रुको, शायद मेरा भी कहीं नाम हो किसी के साथ।
-बस करो। इस बारादरी से बाहर निकलो, जानेमन। श्वानों के मलमूत्र की सडांध से मेरा दम घुटा जा रहा है।
-देखो, मेरा हाथ पकड़ कर खींचा मत करो। चिट्टियां कलाइयाँ मुड़ जाएंगी मेरी। चल तो रही हूँ न।
-लो इधर देखो। ‘कड़क बिजली’ पर भी नाम खोदे हैं। लोहे की इस तोप पर अपने प्रेमी या प्रेमिकाओं के नाम लिखना कितना मुश्किल होता होगा न।
-मुझे तो ये लोहार और लोहारन का नाम ही लगता है। कमबख्त ने तोप बनाने के टाइम ही ढाल दिए होंगे ये नाम।
-अरे उधर देखो। गणेश मंदिर की ओट में दो प्रेमी गुफ़्तगू कर रहे हैं। शायद अपना नाम लिखने के लिए किले में खाली जगह की रिसर्च कर रहे हैं।
-सिल्ली। नाम लिखने के लिए नहीं, बल्कि एक दूजे के बदन के भूगोल का रिसर्च कर रहे हैं। लगता है तुम अहमदाबाद में रहकर भी कभी लव गार्डन नहीं गयी हो।
-तुम्हें तो ऐसे ही खयाल आएंगे। जाकी रही भावना जैसी। बाइ द वे। देट्स लॉं गार्डन, नोट लव गार्डन।
-सो व्हाट? लॉं गार्डन में तुमने किसके हाथ में इंडियन पिनल कोड या क्रिमिनल प्रोसिजर कोड देखा है कभी? अच्छा, बहुत हो गया अब यह किला दर्शन। चलो, चलते हैं यहाँ से। बहुत देख लिया इस खंडहर को। होटल चलते हैं।
-मैं सोच रही हूँ। हमारा नाम भी लिख ही दूँ किले में, किसी खाली स्थान पर। रानी लक्ष्मी बाई भी क्या याद करेगी कि उसके किले में एक अमदावादी जोड़ा आया था।
-अरे ठहरो, क्यूँ कोयले से हाथ काला करती हो?
-रुको तो सही। मैं अभी आई।

-यह क्या, कोई और जगह नहीं मिली। गौस मुहम्मद की कब्र पर लिख दिया।
-और कोई जगह बची कहां थी।
-लेट मी सी। देखूँ तो क्या लिखा है?
-सिमरन लव्स राज। पर ये तो हमारे नाम नहीं हैं।
-क्या फ़र्क़ पड़ता है। शीरीं फ़रहाद हो या सिमरन राज। प्रेम तो किया है न हमने, राज।
-हाँ सिमरन, सच कहती हो तुम।

क्या आप झाँसी में रहते हैं और किले की दीवारों पर अपने प्यार का प्रमाण पत्र नहीं लिखा। धिक्कार है आपके प्रेम पर।

© अजीतपाल सिंह दैया

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