Friday, October 9, 2015

एक लघु प्रेम कथा- ‘रेस्तरां’

-वेटर, एक कॉफी और लाओ।
-कॉफी ही कॉफी। काफी नहीं हो गयी कॉफी। लगता है तुम मुझे कॉफी में ही निपटा देना चाहती हो।
-नहीं। नहीं। ऐसी बात नहीं है। डिनर भी प्लान करेंगें।
-मैं बेहद खुश हूँ। तुम्हें इतना ख़ुश देखकर।
-मैं सबसे पहले तुमसे शेयर करना चाहती थी यह ख़ुशी।
-आइ एम ट्रूली प्राउड ऑफ यूअर अचीवमेंट। ख़ुशबू सेहरावत, जीएम (फ़ाइनेंस)। इट साउण्ड्स औसम।
-चुप करो। बहुत ज्यादा ही बटर नहीं लगा रहे हो!
-लो, अब सच्ची तारीफ करना भी गुनाह है।
-एक बात कहूँ।
-हाँ, कहो न।
-तुम्हें याद है, जब तुम मुझे पहली बार देखने आए थे।
-हाँ, अच्छी तरह। पापा की जिद थी। तुम उनके दोस्त की लड़की थी। माँ भी सहमत थी। कहा था कि भले घर की लड़की है। अच्छी-पढ़ी लिखी है।
-तो तुम आ गए मुझे देखने। मेरे पापा भी न, ख़ुशी से फूले न समा रहे थे। भारतीय राजस्व सेवा का एक अधिकारी जो उनका दामाद बनने वाला था।
-पर
-पर क्या?
-तुम्हारी वह बात मुझे कतई अच्छी नहीं लगी। सच में, तुमने मेरा मूड ऑफ कर दिया था।
-व्हाट डू यू मीन....मुझे कुछ याद नहीं आ रहा।
-बन रहे हो या सचमुच याद नहीं है।
-तुम याद दिलाओ तो शायद याद आ जाए।
-नाटकबाज़! तुम्हें सब याद है। अटीट्यूड शो ऑफ कर रहे हो।
-अटीट्यूड ही सही। पर कुछ बताओ भी अब।
-यही कि तुमने कहा कि मैं शादी के बाद तुमसे जॉब नहीं करवाऊँगा। मुझे घर में ही रहना होगा। तुम्हारे बच्चे पालने होंगे।
-ओह, हाँ कहा तो था। हाँ याद आया। मेरी यह बात सुन कर तुम्हारा चेहरा गहरी निराशा से भर गया था। मैंने नोटिस किया था। तुम्हें मेरी बात से शॉक लगा था। तुमने सोचा होगा कि कैसा लड़का है। भारत सरकार में ग्रुप ए ऑफिसर और कितनी छोटी सोच।
-सीरियसली। मुझे अच्छा नहीं लगा।
-लगता भी कैसे। मैंने बात ही ऐसी करी थी।
-पर अच्छा ही हुआ। देखो, हम कितने ख़ुश हैं।
-हाँ, तुम्हें इतना ख़ुश देखकर मेरा ख़ुश होना लाज़मी है।
-उस दिन की घटना के बाद, तुम्हारी मॉम का फोन आया था मेरी मॉम के पास कि तुम मुझसे शादी करने के लिए तैयार नहीं हो।
-क्यूँ, मेरा डिसीजन ठीक नहीं था क्या? हम शादी करके शायद कभी ख़ुश नहीं रह पाते, ख़ुशबू। तुम्हारी आँखों में महत्वाकांक्षाएं थी। आइआइएम अहमदाबाद से पोस्ट ग्रेजुएट लड़की को मैं केवल अपने किचन में रोटियाँ बेलते और बच्चों की परवरिश करते नहीं देख सकता था। मुझे एक होम मेकर वाइफ़ चाहिए थी। इसका यह मतलब नहीं है कि मैं महिलाओं द्वारा जॉब करने के खिलाफ़ हूँ। मेरी अपनी च्वाइस है। आफ्टरऑल, सबको अपनी पसंद का पार्टनर चुनने का हक है। वर्किंग वुमन हो या नॉन वर्किंग वुमन, हरेक की अपनी अपनी प्राथमिकताएं हो सकती हैं।
-मुझे मालूम चला था। तुम्हारे शादी के लिए एग्री न होने के पीछे का कारण।
-हाँ। मैं नहीं चाहता था कि मैं एक बहेलिया बनूँ। एक बुलबुल को पिंजरे में डाल कर बंद कर के रख दूँ। और बुलबुल की महत्वाकांक्षाओं के पंख पिंजरे के तारों से टकरा टकरा कर जख्मी हो जाए।
-अब प्रेमचंद जैसी कहानियाँ मत बनाओ। तुम्हारा आइ.आर.एस. में सलेक्शन कैसे हो गया? एक्चुअली, तुम्हें तो दैनिक जागरण में हिन्दी का संपादक होना चाहिए था।
-हाँ, उड़ा लो मज़ाक मेरा। आज तो हक बनता है जीएम मदाम का।
-सुनो। फ्राइडे नाइट को डिनर करते हैं। तुम अवंतिका को लेकर आना।
-तुम अवंतिका को भाभी क्यूँ नहीं बोलती?
-क्यूँ? अवंतिका जिद कर रही है क्या? तुम्हारे घर आना जाना बंद करना पड़ेगा मुझको। पता चला कि किसी दिन तुम्हारी बीवी मेरे हाथ में राखी ही न थमा दे।
-हो भी सकता है।
-ना बाबा। मुझे कोई शौक नहीं है, रिश्तों को नाम देने का। अच्छा सुनो, क्या उसे पता है कि तुम मुझे देखने आए थे?
-हाँ।
-और आज तक देखते आ रहे हो। (एक ठहाका गूँजता है।)
-तुम्हारी हंसी बहुत खूबसूरत है। ऐसा लगता है कि एक पहाड़ी झरना होले होले उतर रहा हो सुरम्य वादियों से मैदान की ओर।
-चुप। मारूँगी अभी।

रेस्तरां के वातावरण में उनके टेबल-क्लोथ पर चित्रित फूलों की सुगंध धीरे धीरे तीव्र होती जा रही थी। पीले रंग की दो तितलियाँ जाने कहाँ से आयीं और उनकी टेबल के इर्दगिर्द मंडराने लगीं।

© अजीतपाल सिंह दैया

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