अजीतपाल सिंह दैया
AJIT PAL SINGH DAIA
Thursday, April 9, 2009
कल शाम
कल शाम
छत पर
खड़े होकर
जब मैं
तुम्हारी
नज्में
पढ़ रहा था
अचानक हवा चली
और
तुम्हारी नज्में उड़ चली
आकाश में
पंछी बन कर
तुम्हारे गाँव की तरफ़।
--अजीत पाल सिंह दैया
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