Monday, April 6, 2009

एक लम्स

गुंचे की खुशबू
आज कुछ ख़ास है,
ज़रूर तेरे होंठों ने
छुआ होगा उसे ,
और घुल गई होगी महक
तेरी साँसों की उसमें।
उगते सूरज की लाली
आज कुछ ख़ास लाल है
ज़रूर तेरे होंठों ने
उफुक को चूमा होगा ,
तेरे होंठो का,
बस एक लम्स
मुझे भी दे दे।
-अजीत पाल सिंह दैया


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